नेताजी का चश्मा class 10 summary in Hindi

नमस्कार विद्यार्थियों, स्वागत है आपका हमारे इस नए लेख में,तो इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं "नेताजी का चश्मा short summary".तो चलिए लेख को स
शुरू करते हैं।

नेताजी का चश्मा summary class 10

नेताजी का चश्मा short summary ( netaji ka chashma summary Hindi class 10)

इस कहानी के माध्यम से लेखक स्वयं प्रकाश जी ने यह कहा है कि एक भूभाग जो चारों ओर से सीमाओं से घिरा हुआ है वह देश नहीं कहलाता है स्वयं प्रकाश जी ने कहा है कि देश के अंदर रहने वाले नागरिकों ,जीव जंतुओं ,वनस्पतियों ,पेड़-पौधों ,पशु-पक्षियों ,नदियों, पहाड़ों आदि सब के मेल से ही एक पूरे देश का निर्माण और विकास होता है। जो व्यक्ति इन सभी से प्यार करने और उन्हें सुरक्षित व समृद्ध बनाने की भावना अपने ह्रदय में रखता है केवल उसे ही देशभक्त कहा जाता है। हालदार साहब को हर 15 वे दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। 

वह कस्बा बहुत ही छोटा था कहने भर के लिए बाजार और पक्के मकान थे कस्बे में 1 लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल ,एक सीमेंट का छोटा सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमा घर और एक नगरपालिका भी थी । कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक मूर्ति लगी हुई थी। नेता जी की मूर्ति वैसे संगमरमर की थी परंतु चश्मा संगमरमर का ना होकर एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम बना हुआ था। हालदार साहब जब पहली बार उस कस्बे से गुजरे और चौराहे पर पान खाने के लिए रुके तभी उनका ध्यान उस मूर्ति की तरफ से चला गया । और उसे देखकर बोले कि देखो क्या आईडिया है मूर्ति पत्थर की है लेकिन चश्मा असली लगा हुआ है। दूसरी बार जब हालदार साहब उस कस्बे से गुजरे तो उन्हें मूर्ति में अंतर दिखाई दिया आज मूर्ति पर मोटे फ्रेम वाले चश्मे के बजाए तार के फ्रेम वाला गोल चश्मा था। तीसरी बार उन्होंने फिर एक नया चश्मा नेता जी की मूर्ति पर देखा अब तो हालदार साहब को उस कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना ,पान खाना और नेता जी की मूर्ति पर लगे चश्मे को बदलते देखते रहने की आदत सी पड़ चुकी थी। पान वाले से पूछने पर हालदार साहब को पता चलता है की मूर्ति पर चश्मे पर बदलने का काम कैप्टन चश्मे वाला करता है। जब भी कोई ग्राहक आता और उसे वही चश्मा चाहिए तो वह मूर्ति से निकाल कर उसे बेच देता है और उसकी जगह दूसरा फ्रेम लगा देता था इस कारण मूर्ति पर हर समय एक नया चश्मा लगा रहता है।

 कैप्टन और कोई नहीं एक बेहद बूढ़ा मरियल सा लंगड़ा आदमी था जो सिर पर गांधी टोपी और आंखों में काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी सी संदूकची और दूसरे हाथ में बांस पर टंगे हुए बहुत से चश्मे को लेकर फेरी लगाता था। जिस मजाक से पान वाले ने उसके बारे में बताया हालदार साहब को अच्छा ना लगा। हालदार साहब 2 साल तक उस कस्बे से गुजरते रहे और नेता जी की मूर्ति में बदलते चश्मे को देखते रहे। कभी गोल चश्मा होता फ्लैश तो कभी चौकोर होता तो कभी लाल ,तो कभी काला चश्मा ,कभी धूप का चश्मा ,तो कभी रंग बिरंगा चश्मा। फिर एक बार ऐसा हुआ कि मूर्ति की चेहरे पर कोई भी या कैसा भी चश्मा नहीं था। दूसरी बार गुजरने पर भी मूर्ति का चश्मा नहीं था पान वाले से पूछने पर पता चला कि कैप्टन की मृत्यु हो गई है। कैप्टन की मृत्यु की खबर सुनकर हालदार साहब मायूस हो जाते हैं उन्हें लगता है कि अब वहां कैप्टन जैसा देश भक्त पता नहीं होगा भी या नहीं जो नेता जी की मूर्ति को बिना चश्मे के नहीं देख सके ।

अतः हालदार साहब ने फैसला ले लिया कि अब के बाद इस कस्बे से गुजरते समय ना तो रुकेंगे, ना पान खाएंगे और ना ही उस तरफ देखेंगे यही निर्देश उन्होंने अपने ड्राइवर को भी दिया परंतु आदतअनुसार कस्बे से गुजरते समय उनकी आंखें मूर्ति की तरफ मुड़ी जाती हैं और मूर्ति पर चश्मा देख कर आश्चर्यचकित भी उठते हैं। ड्राइवर को तुरंत रोकने का आदेश देते हैं और मूर्ति की ओर बढ़ते हैं और देखते हैं कि बच्चों द्वारा सरकंडे का चश्मा नेता जी की मूर्ति पर लगा हुआ था। हालदार साहब यह देखकर भावुक हो उठते हैं और उनकी आंखें भर आती हैं उनके मन में एक आशा जागृत होती है कि आने वाली पीढ़ी अर्थात बच्चों के मन में देशभक्तों के प्रति सम्मान और देशभक्ति का जज्बा आज भी कायम है।

निष्कर्ष

इस लेख में हमने नेताजी का चश्मा पाठ की Summary जानी। जो ncert कक्षा 10 का हिंदी का पहला पाठ है।

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